कुछ ऐसे पागल भी हैं...


कुछ ऐसे पागल भी हैं...
जो गाली खाते हैं, डंडे खाते हैं...
फिर भी अपनी धुन में रहते हैं...
इस समाज की खातिर हर ज़ुल्म सहते हैं...
और फिर पागल कहलाते हैं...
कुछ ऐसे पागल भी हैं...

जिनके लिए वो रोते हैं...
वो ही उनपर हंसते हैं...
जिनके लिए गाली सुनते हैं...
वो आराम से सोते हैं...
फिर भी वो लड़ते हैं...
और हर ज़ुल्म हिम्मत से सहते हैं...
कुछ ऐसे पागल भी हैं... 

(शोभित चौहान)

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